जिंदगी के सफ़र में गुज़र जाते हैं जो मुकाम ...वो फिर नहीं आते ...वो फिर नहीं
आते ...एस यू वी के सिस्टम में यही गाना बज रहा था जब मैं अपने मित्र विश्वनाथ के
साथ एम् एम् हिल्स जाने के लिए निकला था । हमने बहाना तो काम का ही बनाया था लेकिन अंदर ही अंदर की
प्लानिंग थी कि घूमना देखना ज्यादा है और काम तो होता रहेगा।
बंगलोर से हम
सुबह सात बजे ही निकल पड़े थे और अर्धनिद्रा में ही बढे चले जा रहे थे ..वैसे भी
रास्ते जाने पहचाने थे इसलिए उनमे ज्यादा उत्सुकता नहीं बची थी ..मालूम था कि अब
क्रासिंग आएगा ..अब बायीं तरफ फलाना कालेज है और दायीं तरफ ढिकाना दफ्तर ..मालूम
था कि डेढ़ घंटे बाद जब बैंगलोर की सीमा से बाहर निकलेंगे तभी अपेक्षाकृत अनजाने
रास्ते मिलेंगे।
मित्र ने बताया
कि दस बजने वाला है ..मतलब कहीं रुककर कुछ नाश्ता हो जाना चाहिए ..ये दक्षिण
भारतीय लोग समय के बड़े पाबंद होते हैं ...नाश्ते के साथ ही तय हुआ कि शिवसमुद्रम
फाल्स भी देखते हुए चलेंगे। पहाड़ों और झरनों का इलाका शुरू हो गया था ..दूर से ही
जलप्रपात दिखने लगा था और पास से तो मंत्रमुग्ध कर देने वाला दृश्य था ...हम उसके
दुधिया निरूद्देश्य पानी को गिरता देखते रहे और उसी के होकर रह गए। प्रयोजन से परे
चलने और गिरने में जो मजा है उसे बिना भोगे नहीं जाना जा सकता। आखिर मित्र ने ही
प्रैक्टिकल बात की ...अब चलना चाहिए ..पहाड़ों का इलाका है ..शाम से पहले पहुँचना
अच्छा रहेगा। बेमन से ही सही कभी कभी ज्ञानी लोगों की बात माननी पड़ती है। फिर
सड़कें पीछे छूटने लगी ...जितनी तेजी से हम आगे बढ़ते हैं उतनी तेजी से हम पीछे को
भी छोड़ते जाते हैं।
और फिर विश्वनाथ ने खाने की
घंटी बजा दी। वैसे तो विश्वनाथ शुद्ध शाकाहारी लिंगायत ब्राहमण था, कमर से लिंग बांध कर रखता
था ..लेकिन बाहर निकलते ही पता नहीं उसे क्या हो जाता था कि नान-वेज रेस्टोरेंट
ढूँढने लगता था ...खाने के बाद उसके चेहरे पर तृप्ति देखकर उसके घर पर उसे क्या
मिलता होगा यह अनुमान सहज ही लगाया जा सकता था।
कुछ दूर चलने के
बाद एक घर के सामने मित्र ने ड्राईवर को रुकने को कहा ..आसपास देखकर भी माजरा समझ
में नहीं आ रहा था ..तब उसी ने बताया ..यह कन्नड़ के प्रसिद्ध हीरो राजकुमार का घर
है ..यहीं आये हुए थे जब वीरप्पन ने उनको अगवा करके आगे के पहाड़ों में रखा था। मैं
तो ठगा सा उसे देखता रह गया ..जब इसकी बात मानकर चल ही चुके हैं और शाम से पहले
पहुंचना भी है तब इसे यह सब बताने की क्या जरूरत थी। फिर उसके बाद तो गाड़ी दौड़ती
रही और हम राजकुमार और वीरप्पन की बातें करते रहे ... कि राजकुमार हिंदी जानते हुए
भी कभी भूले से भी हिंदी नहीं बोलते थे और कैसे वीरप्पन ने उन्हें पूरे आदर के साथ
बंधक रखा था।
इंतज़ार खत्म हुआ
और पहाड़ों की श्रृंखला शुरू हो गयी ..एक के बाद दुसरे पहाड़ों को हम उनपर बने
रास्तों से पार करते रहे ..ऊपर जाने पर अपने छोड़े हुए रास्तों को नीचे देखना बड़ा विहंगम लगता है।
पहाड़ों पर ड्राइविंग तो और भी मुश्किल बात है - तीखे मोड़, अचानक सामने आ गयी दूसरी गाड़ी, सड़क पर चल रही बंदरों की मीटिंग ..खैर हमारा
ड्राईवर कुशल भी था और अनुभवी भी।
टारगेट समय से पहले ही हम
एम् एम् हिल्स पहुँच गए थे। ठहरने खाने के लिए सिर्फ सरकारी व्यवस्था ..कोई होटल
नहीं कोई रेस्टोरेंट नहीं। ऐसे में टूरिज्म डिपार्टमेंट से जान पहचान काम आया और हमें वी
आइ पी काटेज मिल गया ..अन्दर वी आइ पी का मतलब था ..बड़ा सा टॉयलेट ..बड़ी सी बालकनी
और बड़ा सा पलंग, मच्छरदानी के साथ।
मच्छरदानी देखकर हम थोड़े सतर्क हो गए क्योंकि इस सुविधा के ढेरों खतरे हैं। रात के खाने
में चावल, रसम, सांभर के साथ सात तरह की सब्जी, जिनमे से हम उत्तर भारतीयों
को एक भी खाने लायक नहीं लगती ...खैर किसी तरह खाने के रस्म को निबटाया और अपने अपने बालकनी में गए ...वहां तो
अविश्मरणीय नज़ारा था ..छिटकी हुई चांदनी में कई पहाड़ एक के बाद एक दिख रहे थे
...उनसे टकराती हवा तूफ़ान की तरह सुनाई देती थी ...कितनी देर मैं यूँ ही बैठा रहा, फिर मच्छरों ने बताया कि अब जाकर
अपने ही जाल में फँस जाओ तो बेहतर।
सुबह माले
महादेश्वरा के दर्शन की तयारी के साथ हम काटेज से निकले ..पहले मैं इसे भोलेनाथ का मंदिर समझ रहा था लेकिन यह माले महादेश्वरा नाम के संत का मंदिर है जो कोई छह सौ साल पहले बाघ पर सवार घूमते थे। एम् एम् हिल्स तीन राज्यों की सीमाओं से सटा है ...कर्णाटक, आँध्रप्रदेश और तमिलनाडु ...शायद इसी वजह से वीरप्पन ने इस इलाके को अपने कार्यक्षेत्र के रूप में चुना था।
मंदिर में भी हमारे लिए
दर्शन की अलग से व्यवस्था थी ..पुजारी ने बाकायदा मूर्ति के ऊपर से हार निकालकर
हमें पहनाया और हार को अपनी जीत और विशेषता की तरह टांगे, अपना ढिंढोरा पीटते हम बाहर आ गए ।
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